Saturday, February 18, 2017

अनमना कवि





















कविता लिखते लिखते
जब उपादेयता का प्रश्न
मचल जाता है
कवि कविता लिखने
से कतराता है


और फूलों की घाटी की और उड़ता
एक काल्पनिक यान
बाज़ार की गलियों की और
मुड़ जाता है
जोड़ गणित के बीच
अनमना कवि
चुपचाप कसमसाता है
पर कवि का मिटना सिमटना
कौन जान पाता है




व्यावहारिक दृष्टि
काव्यदृष्टि से करती है तकरार
कौन लड़े मुक्क़द्दमा इसका
कवि में फकीरी है  बेशुमार

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ फरवरी २०१७ 

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