लिखते लिखते
शब्द श्रंखला
जब सूखी टहनी की तरह
जब सूखी टहनी की तरह
फलान्वित होने की बाट जोहती
दिखाई देती है
शब्द से दूर जाकर
घने निर्वात में
घरौंदा बनाता
फिर
चुप की चीख से
घबरा कर
लौट आता
शब्दों के सुरक्षित घेरे में
और
करता
प्रतीक्षा
उस किरण की
जिसके अनुग्रह स्पर्श से
रसीली हो जाए
शब्द श्रंखला
और
मन में
गुनगुनाये
अक्षय हरियाली
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
26 जुलाई 2012